महान क्रांतिकारी ठाकुर जगमोहन सिंह

विजयराघवगढ़ (जिला कटनी ) के महान क्रांतिकारी   ठा.जगमोहन सिंह ठाकुर सरजू प्रसाद सिंह के पुत्र ठाकुर जगमोहनसिंह का जन्म 8 अगस्त 1857 को दोपहर 2.30 बजे हुआ था। जिस दिन साबित अली का कत्ल हुआ था। उस समय वह केवल 03 माह के थे। उस गोद के बालक ने तोपों की गर्जना सुनी थी और अपने पिता सरजू प्रसाद का महल से पलायन भी देखा था। पाँच वार्षो तक पुलिस के डर से यहाँ वहाँ भटकते रहने की कहानियाँ भी सुनी थी। जब वह 8 वर्ष 8 माह का था तब उसे शिक्षा प्राप्ति के लिए बनारस भेज दिया गया जहाँ वह अपनी माता और दादी के साथ 19 मार्च 1866 को पहँचा और वार्ड की शिक्षण संस्था मे दाखिल हुआ। उसकी सारी जायदाद राजसात कर ली गई और उसे 50 रूपये प्रतिमाह पेन्शन दी गई। बनारस के कमिश्नर और पोलीटिकल ऐजेन्ट शेक्सपियर को इस परिवार की दयनीय दशा परिणित हो गया। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने "हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' पर तरस आया। उसने सरकार को लिखा कि पेन्शन की रकम नामक एक मासिक पत्रिका निकाली थी जिसमें जगमोहन सिंह 100 रूपये प्रतिमाह कर देना चाहिए। अपने लेख भेजा करते थे। वे भारतेन्दु जी द्वारा स्थापित संस्था " वार्ड की संस्था में रहकर उन्हें अंग्रेजी, संस्कृत, हिन्दी, बंगला भारतेन्दु मण्डल' के भी सदस्य बन गये थे जिसमें बनारस के सभी और उर्दू का ज्ञान कराया गया। वे इन भाषाओं में जल्दी ही प्रतिष्ठित लेखक और बुद्धिजीवी जैसे – बदरीनारायण प्रेमधन, पारंगत हो गये। उन्होने अपनी प्रतिभा से गुरूजनों का प्रचुर बालकृष्ण भट्ट, लाला श्री निवासदत और अन्य समकालीन विद्वान स्नेह भी अर्जित किया। इस संस्था के गिफ्रिथ नामक शिक्षक ने सक्रिय योगदान देते थे। जो संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे, रामायण का अंग्रेजी में अनुवाद 12 वर्षों तक वार्ड की शिक्षण संस्था में अध्ययन के बाद वे 20 किया था। उनके असाधारण पंडित्य से जगमोहन सिंह बहुत साल की उम्र में क्वीन्स कॉलेज भेजे गये। यहाँ उन्होने बायरन, प्रभावित हुए। कोट्स, शैली गोल्डस्मिथ आदि का गहन अध्यन किया। वे शैली केदारनाथ पालधी जो उस समय संस्था के सुपरिन्टेण्डेन्ट की कविता से बहुत प्रभावित थे। थे, जगमोहन की कुशाग्र बुद्धि के बड़े प्रशंसक थे। उन्हें जो अपनी शिक्षा पूरी करके वे विजय राघवगढ़ लौट आये बनारस उपाधि पत्र मिले उनसे पता लगता है कि उस समय शिक्षकों का के प्रवास ने उनके जीवन में इतना परिवर्तन ला दिया था कि वे अपने विद्यार्थियों के प्रति कितना लगाव और स्नेह था। प्रकृति के बीच में ही रहना चाहते थे। उन्होने झपावन नदी के बनारस में रहते हुए ठाकुर जगमोहन सिंह का भारतेन्दु दूसरी ओर एक उद्यान लगाया था जिसे भरतबाग नाम दिया गया। हरिश्चन्द्र से भी परिचय हुआ जो आगे चलकर पगाढ मैत्री में इसी उद्यान में निवास के लिए उन्होने एक छोटा से मकान भी प्रदेशवासियों को o PaNSIST RATNA बनवाया जो कविता कुटीर कहलाता था, और फूलवाटिका को प्रशिक्षण रायपुर में हुआ और 1 नवम्बर 1881 को तहसीलदार रामवन नाम दियाप्रथम श्रीणी के पद पर आसीन हुए। वे बहुत दिनों तक जब उनके पिता सरजू प्रसाद सिंह की मृत्यु हुई तब उनके शिवरीनारायण में तहसीलदार रहे। उसके पश्चात् 1883 तक हटा एक पुत्र और एक पुत्री थी। लड़की की शादी अलवर के पहाड़ और फिर खण्डवा में रहे 1898 में जब वे सोहागपुर में तहसीलदार सिंह जी से हो गई थी, परन्तु भारत सरकार विद्रोहियों के प्रति थे, उन्हें भयंकर महमेह हो गया और 4 मार्च 1899 को उनका इतनी असहिष्णु थी कि जगमोहन सिंह को अपनी बहिन से राखी निधन हो गया। उनका अन्तिम सोहागपुर में पलक नदी के किनारे बँधवाने की अनुमति भी नहीं देती थीहुआ। उनकी समाधि पर उनकी काव्य रचना का क पद अंकित है जगमोहन सिंह का विवाह बनारस में 1874 में हुआ था। परन्तु अब वह बाढ़ से क्षतिग्रस्त हो गया है। उनके दो सन्तानें हुईएक पुत्र ब्रजमोहन सिंह और दूसरी पुत्री ठाकुर जगमोहन सिंह ने अपनी अधिकांश रचनाओं का सृजन विद्या जिसका विवाह ठा. गजराज सिंह के साथ 25 जून 1855 विजयराघवगढ़ में ही किया था। कुछ रचनाएँ उन्होने सरकारी को शिवरीनारायण में सेवा में रहते हुए भी हुआवे भारतून पूर्ण की थी। उनके नामक जागीर के सुपुत्र ब्रजमोहन सिंह स्वामी थे। ठा. ने आगरा से बी.ए. जगमोहन सिंह ने किया। इसके बाद वे मनकियाकुरर्मिन से इंग्लैण्ड चले गये और दूसरी शादी 1878 में वहाँ से बार.एट.लॉ कर ली थी, जिससे की उपाधि प्राप्त कर एक पुत्र चित्रंसिंह एक पुत्र चन्द्रमोहन हुआ थाउनकी सिंह। कन्या का तीसरी पत्नी मुनिया विवाह रायपुर मे बारी विजयराघवगढ़ हुआ। सन् 1962 में की ही निवासिनी थी उनकी मृत्यु हो गई। जिससे उन्होंने 1879 विजयराघवगढ़ में विवाह किया। परिवार को अपने मुनियाबारी से उनके वीरमोहनसिंह नामक एक पुत्र और तीन विद्रोह की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इस परिवार की जो पुत्रियाँ सरस्वती, तारा और शांति हुईदूसरी शाखा मैहर में थी उनके वंशजों ने बडे सुख और आराम का जब ये काशी में थे तभी इन्होने बाबू राकली चौधरी से मित्रता जीवन व्यतीत किया। परन्तु यह परिवार अंग्रेजों को कुदृष्टि के कर ली थी जो न्यायिक सेवा के अधिकारी थे। उन्होने सलाह दी कारण गरीबी की सीमा रेखा के नीच रहकर ही अपने दिन काटता थी के उन्हें अपने जीविकोपार्जन के लिये कोई सरकारी सेवा रहा। स्वीकार कर लेना चाहिए। इस सलाह के अनुसार उन्होने अंग्रेज ठाकुर जगमोहन सिंह ने हिन्दी साहित्य की महान सेवा की सरकार को उनके सामाजिक स्तर के अनुरूप कोई नौकरी देने किन्तु धनाभाव के कारण उनकी रचनायें प्रकाशित न हो सकी। हेतु आवेदन किया। उनकी रचनाओं की पांडुलिपियाँ भी पत्र-तत्र बिखरी है। हिन्दी 7 जुलाई 1880 को कमिश्नर सी.पी. एण्ड बरार का पत्र आया साहित्य उस दिन के प्रतीक्षा में है जब कोई शोध छात्र इनका गहन कि उन्हें तहसीलदार का पद दिया जाता है जिसे उन्होंने 8 अध्ययन कर इन्हें प्रकाश में लायेगा और मां भारती की भण्डार की जुलाई 1880 को सहर्ष स्वीकार कर लियाउनका प्राथमिक श्रीवृद्धि हो सकेगी। का ऐजेन्ट वर्ष की उम्र लिए बुझ गर उनकी कृतियों में कुछ का उल्लेख आवश्यक है। मेघदूत, कर विजयराघवगढ़ वापस लौटे। इनकी दो सन्तानें थीं, एक कन्या कुमारसंभव, सजनाषक, प्रेम संपत्ति लता, श्याम लता, श्यामा और एक पुत्र चंद्रमोहन सिंह। कन्या का विवाह रायपुर में हुआ। स्वप्न, श्यामा सरोजिनी, देवयानी, ऋतु संहार, मानस संपत्ति, 1962 में उनकी मृत्यु हो गई। चन्द्रमोहन सिंह भी वकालत पास श्यामा विनय और प्रलय आदि प्रमुख है। करके विजयराघवगढ़ में ही रहते थे जिनका स्वर्गवास एक जन्मोत्सव मनाने से पहले ही हो गया विद्रोह दुर्घटना में हुआ। इनका एक पुत्र था जिनका नाम कुंवर विजयराघवगढ़ ने प्रथम नरेश राजा प्रयागदास का जब चन्द्रप्रकाश सिंह था तथा इनकी दो पुत्रियां शारदा सिंह व सीता देहांत हुआ तब उनके पुत्र युवराज सरयप्रसाद वयस्क नहीं थे। सिंह अपनी पूज्य मातुश्री रानी सोमप्रभा देवी के साथ इस कारण विजयराघवगढ राज की बागडोर कोर्ट ऑफ वार्डस विजयराघवगढ़ में रहती हैं। कुंवर चन्द्रमोहन सिंह जो कि कई वर्षों के तहत अंग्रेजी हकमत ने संभाल ली थी और तहसीलदार मीर तक विक्षिप्त सा जीवन व्यतीत करते-करते 2 अक्टूबर 1984 को साबित को विजयराघवगढ राज्य का ऐजेन्ट नियक्त कर दिया रिटनेस की बीमारी से काल कवलित हो गये। इस तरह था। किशोरवय के सरयू प्रसाद अगस्त 1857 में 17 वर्ष की उम्र विजयराघवगढ़ का अंतिम टिमटिमाता चन्द्रप्रकाश रूपी दिया सदा में पिता बने थे और उनके यहां 8 अगस्त 1857 को एक पत्र ने के लिए बुझ गया। जन्म लिया था जिसका नाम बाद में जगमोहन सिंह रखा गया। विजयराघवगढ़ राजवंश को अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह की बहत पत्र जन्म के अवसर पर राजा सरय प्रसाद एक समारोह का बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। सारा राजपाठ, किला. धनसंपत्ति तो आयोजन करना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने ब्रिटिश गर्वमेन्ट ब्रिटिश हुकूमत ने जप्त कर लिया था साथ ही अंग्रेजों की कुदृष्टि के कारण इस राजपरिवार को गरीबी रेखा के नीचे रहकर जीवन के ऐजेन्ट तहसीलदार मीर साबित से रूपए की मांग की थी। व्यतीत करना पड़ा। किन्तु तहसीलदार द्वारा उनकी अर्जी पर विचार नहीं किया गया विजयराघवगढ़ राज्य के संस्थापक नरेश राजा प्रयागदास के और मांगी गई राशि से कम राशि जन्मोत्सव के लिए मंजूर पौत्र और अमर शहीद राजा सरजू प्रसाद के पुत्र ठाकुर जगमोहन गई। इस बात से 17 वर्षीय नरेश सरयू प्रसाद सिंह का राजपूत सिंह देश के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार रहे। प्रख्यात रक्त खौल उठा और उन्होंने ब्रिटिश ऐजेन्ट तहसीलदार मी साहित्यकार भारतेन्दु हरिशचन्द्र से उनकी प्रगाढ़ मैत्री रही। हिन्दी साबित की हत्या कर दी। जिस समय विजयराघगढ़ में यह भाषा के जनक कहे जाने वाले आचार्य रामचन्द्रशक्ल ने भी ठा. घटना घटी उस समय देश के प्रथम स्वाधीनता संग्राम को लेकर जगमोहन सिंह की काव्य कृतियों की सराहना अपने लेखों में की उथल-पुथल मच चुकी थी। अंग्रेजों के खिलाफ जगह-जगह से है। महाकवि कालीदास द्वारा कठिन संस्कृत भाषा मे रची गई अमर विद्रोह की खबरें आ रही थीं। पन्ना के राजा मुकुंद सिंह राजा कृतियां मेघदूत एवं कुमार संभव का सरल हिन्दी का अनुवाद करने सरयू प्रसाद को अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने के लिए प्रेरित का श्रेय भी ठाकुर जगमोहनसिंह के नाम रहा। सजनाषक, प्रेम भी किया था। इस तरह जगमोहन सिंह का जन्म ही संपत्ति लता, शमा स्वप्न, श्यामलता, श्यामा सरोजनी, देवयानी, विजयराघवगढ़ में 1857 की क्रांति का कारण बना और अंग्रेज ऋतु संहार मानस संपत्ति विनय और प्रलय उनकी प्रमुख कृतियां अधिकारी पर चलाई गई गोली ने महाकैशल ही नहीं वरन पूरे हैं। विजयराघवगढ़ के इस वरद पत्र ठा. जगमोहन सिंह का जन्म विंध्य अंचल में चिंगारी फैलाने का काम किया। अगस्त 1857 में हुआ तब तक देश मे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का सूत्रपात हो चुका था। पिता राजा सरयू प्रसाद ने जब ठा. जगमोहन सिंह ने अपनी अधिकांश रचनाओं का सृजन विजयराघवगढ़ में अंग्रेजी राज के खिलाफ बगावत का बिगुल विजयराघवगढ़ में ही किया था, कुछ रचनाएं उन्होंने सरकारी फंका तब जगमोहन की उम्र मात्र तीन माह की थी। जगमोहन का सेवा में रहते हुए भी पूर्ण की थीं। इनके पुत्र ठा. वृजमोहन सिंह ने बाल्यकाल और युवावस्था अभाव और कठिन संघर्ष में बीती आगरा से बी.ए. किया। बैरिस्टर वृजमोहन सिंह पं. जवाहरलाल बावजूद इसके उन्होंने कॉलेज तक की पढ़ाई की। उनकी नेहरू के अभिन्न मित्र थे1952 हेतु इन्हे पार्लियामेंट हेतु कांग्रेस अधिकांश सहित्य साधना विजयराघवगढ़ में हई। तहसीलदार पद की टिकट दी गई किंतु इन्होने स्वीकार नहीं किया। इसके बाद पर कार्यरत रहते हुए 4 मार्च 1899 को शिवरीनारायण में उनकी वे इंग्लैण्ड चले गये और वहां से वार एट ला की उपाधि प्राप्त देहलीला समाप्त हुई।