दही, भगाये बीमारियां


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दूध के मुकाबले दही खाना सेहत के लिये हर तरह से ज्यादा लाभकारी है. दूध में मिलने वाला फैट और चिकनाई बौडी को एक उम्र के बाद नुकसान देता है. इसके मुकाबले दही में मिलने वाला फासफोरस और विटामिन डी बौडी के लिये लाभकारी होता है. दही में कैल्शियम को एसिड के रूप में समा लेने की खूबी भी होती है. रोज 300 मिली दही खाने से आस्टियोपोरोसिस, कैंसर और पेट के दूसरे रोगों से बचाव होता है. दही बौडी की गर्मी को शांत कर ठंडक का अहसास दिलाता है. फंगस को भगाने के लिये भी दही का प्रयोग खूब किया जाता है.
सबसे बड़ी बात यह है कि दही को भोजन के रूप में देखा जाता है और इसका प्रयोग कई रूपों में किया जाता है. देश के अलग अलग हिस्सों में दही का प्रयोग रायता, लस्सी और श्रीखंड के रूप में किया जाता है. दही का प्रयोग करके कई तरह की सब्जी भी बनायी जाती है. कुछ लोग दही में काला नमक और जीरा डालकर खाते हैं. यह पेट के लिये कई तरह से लाभकारी होता है.  जो लोग वजन घटाने का काम करते हैं दही उनके लिये भी कई तरह से लाभकारी होता है.
बीमारियां भगाये दही
दही का नियमित सेवन करने से शरीर कई तरह की बीमारियों से मुक्त रहता है. दही में मिलने वाला फास्फोरस और विटामिन डी के साथ कैल्शियम को एसिड रूप में ढाल देता है. जो लोग बचपन से ही दही का भरपूर मात्रा में सेवन करते हैं उनको बुढ़ापे में आस्टियोपोरोसिस जैसा रोग होने का खतरा कम हो जाता है. दही में अच्छी किस्म के बैक्टिरिया पाये जाते हैं जो शरीर को कई तरह से लाभ पहुंचाते हैं. पेट में मिलने वाली आंतों में जब अच्छे किस्म के बैक्टिेरिया का अभाव हो जाता है तो भूख न लगने जैसी तमाम बीमारियां पैदा हो जाती हैं. इसके अलावा बीमारी के दौरान या एंटीबाइटिक थेरेपी के दौरान भोजन में मौजूद विटामिन और खनिज हजम नहीं होते. इस हालत में दही ही सबसे अच्छा भोजना बन जाता है. यह इन तत्वों को हजम करने में मदद करता है. जिससे पेट में होने वाली बीमारियां अपने आप ही खत्म हो जाती हैं.
आज की दौड़ती भागती जिंदगी में पेट की बीमारियों से परेशान होने वाले लोगों की संख्या सबसे ज्यादा होती है. ऐसे लोग अपनी डाइट में प्रचुर मात्रा में दही को शामिल करें तो अच्छा रहेगा. उनको पेट में होने वाली सबसे खास बीमारी भोजन का न पचना या अपच रहना दूर हो सकता है. दही खाने से उन लोगों को भी लाभ होगा जो भूख न लगने की शिकायत करते रहते हैं. दही खाने से पाचन क्रिया सही रहती है जिससे खुलकर भूख भी लगती है और खाना सही तरह से पच भी जाता है. दही खाने से बौडी को अच्छी डाइट मिलती है जिससे स्किन में एक अच्छा ग्लो भी रहता है.
इंफैक्शन से बचाव
जानकारी के मुताबिक 300 मिली दही रोज खाने से केंडिडा इंफैक्शन द्वारा होने वाले मुंह के छालों से निजात मिलती है. महिलाओं में अक्सर केंडिडा इंफैक्शन होने के कारण मुंह में छाले पड़ जाते हैं. जिन महिलाओं को इस तरह की शिकायत हो वह दही का भरपूर मात्रा में सेवन करें. मुंह के छालों पर दिन में 2 से 3 बार दही लगाने से भी छालें जल्द ही ठीक हो जाते हैं. बौडी के ब्लड सिस्टम में इंफैक्शन को कंट्रोल करने में व्हाइट ब्लड सेल का योगदान सबसे ज्यादा होता है. दही खाने से व्हाइट ब्लड सेल मजबूत होता है. जो बौडी की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.
बढ़ती उम्र के लोगों को दही का सेवन जरूर करना चाहिये. जो लोग लंबी बीमारी से लड़ रहे होते हैं दही उनके लिये भी बहुत उपयोगी होता है. सभी डाइटिशयन एंटीबाइटिक थेरेपी के दौरान दही का नियमित सेवन करने के लिये राय देते हैं. दही का सेवन करके ब्लड में कोलेस्ट्रोल को कम किया जा सकता है जिससे हार्ट में होने कोरोनरी आर्टरी रोग से बचाव करना आसान हो जाता है. डाक्टरों का कहना है कि दही खाने से ब्लड कोलेस्ट्रोल को कम किया जा सकता है.
दही है खास
दूध में लेक्टोबेसिलस बुलगारिक्स बैक्टिरिया को डाला जाता है. जिससे शुगर लेक्टिस एसिड में बदल जाता है. इससे दूध जम जाता है. इस जमे हुये दूध को ही दही कहा जाता है. यह प्रिजर्वेटिव की तरह से काम करता है.  दही खमीर युक्त डेरी उत्पाद माना जाता है. पौष्ठिकता के मामले में दही को दूध से कम नहीं माना जाता है. यह कैल्शियम तत्व के साथ ही तैयार होता है. कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट्स को साधारण रूप में तोड़ा जाता है. इसी लिये दही को प्री डाइजेस्टिक फूड माना जाता है. बच्चों के डाक्टर दही को छोटे बच्चों के लिये भी उपयुक्त मानते हैं. जो लोग किसी कारणवश लैक्टोस यानि शुगर मिल्क का सेवन नहीं कर पाते वे भी दही का सेवन कर सकते हैं. शुगर लेक्टिक एसिड में बंट जाती है. बैक्टीरिया भी कैल्शियम और विटामिन बी को हजम करने में मदद करता है.
दही में कंजुगेटिड लिनोलेइक एसिड (सीएलए) होता है. सीएलए फ्री रेडिकल्स सेल्स को बनने से रोकने का काम करता है. यह सेल्स बौडी के विकास को रोकने का काम करते हैं. बौडी में होने वाले रोग से बचाव में मदद करते हैं. दही से कैंसर और हार्ट रोगों को रोकने में मदद मिलती है. दही को तैयार करते समय इस बात का खास ख्याल रखा जाना चाहिये कि इसको फुल फैट मिल्क से तैयार न किया जाये. इस तरह से तैयार दही में पफैट और कैलोरी की मात्रा बढ़ जाती है. पहले से मीठी और मीठे के रूप में तैयारी दही में सीएलए के लाभ कम हो जाते है.
अगर दही को मीठा खाना है तो इसमें चीनी की जगह पर शहद या ताजे फल को मिलाया जा सकता है. दही और दही से बनाया जाने वाला छाछ गर्मी को अंदर और बाहर दोनों तरह से बचाता है. गर्मियों में तपती धूप का प्रकोप रोकने के लिये दही और छाछ का सेवन जरूरी हो जाता है. कुछ लोगों में यह भ्रांति होती है कि दही खाने से जुकाम और सर्दी जैसी बीमारियां हो जाती हैं. इस तरह के लोगों को दही का सेवन दिन में खाने के बाद करना चाहिये. ठंडे या फ्रिज में रखे दही का सेवन नहीं करना चाहिये. दही का सेवन हमेशा ताजा ही करना चाहिये. यह खाने में अच्छा लगता है.