तोड़ाई के बाद सब्जियों का सही तरीके से प्रबंधन घाटे से बचा सकता है.

 



अकसर ज्यादा मात्रा में पैदावार होने पर तोड़ाई के बाद सब्जियों की छीछालेदर हो जाती है. ऐसे में किसानों को सब्जियों के मुनासिब दाम नहीं मिल पाते. अगर तोड़ाई के बाद सब्जियों का सही तरीके से प्रबंधन किया जाए तो घाटे की नौबत आने से बचा जा सकता है.
बदलते मौसमों में एक ही सब्जी लगातार मिल पाना मुश्किल है. किसी खास मौसम में कुछ सब्जियां इतनी ज्यादा पैदा हो जाती हैं कि उन के सही दाम तक मिलने मुश्किल हो जाते हैं. मजबूरी में किसानों को अपनी उपज औनेपौने दामों में बेचने को मजबूर होना पड़ता है. आंकड़ों की मानें तो देश में कुल सब्जी उत्पादन का 20 से 30 फीसदी हिस्सा तोड़ाई के बाद सही प्रबंधन न होने के कारण बेकार हो जाता है. इस से सालाना तकरीबन 20 खरब रुपए का नुकसान होता है. सब्जियों की तोड़ाई के बाद प्रबंधन कर के सब्जियों की मांग और आपूर्ति पर नियंत्रण किया जा सकता है और सब्जियों को खराब होने से बचाया जा सकता है.
तमाम कुदरती वजहें जैसे तापमान, आर्द्रता, आक्सीजन और सूर्य की रोशनी तोड़ाई के बाद सब्जियों को नुकसान पहुंचाती हैं, जिस से सब्जियों पर अनेक तरह के रासायनिक परिवर्तन होते हैं, नतीजतन वे अनेक प्रकार की बीमारियों के ग्रसित हो जाती हैं और खाने लायक नहीं रहती हैं.
आमतौर पर तोड़ाई के बाद सब्जियां खेत से घर या बाजार तक लाने पर आपस में रगड़ने से उन की त्वचा बेकार हो जाती है, जिस से बीमारी फैलाने वाले कीटाणु उन में घुस जाते हैं और उन्हें खराब कर देते हैं. शुरू में यह बदलाव मामूली होता है जो कि पता नहीं चल पाता है. इन बदलावों की वजह से सब्जियों में शुगर, प्रोटीन और विटामिन की मात्रा में कमी आ जाती है.
सब्जियों की त्वचा खराब हो जाने से एंजाइमेटिक प्रक्रिया बढ़ जाती है. उन में कैटलेज पर आक्सीडेज व पालीफीनाल आक्सीडेज एंजाइम सक्रिय हो जाते हैं, जो कि उन के गूदे का रंग भूरा या काला कर देते हैं, जिस से वे खाने लायक नहीं रहती हैं.
सब्जियों में 50 फीसदी से ज्यादा पानी की मात्रा होती है, जिस की वजह से रासायनिक परिवर्तन जल्दी होता है. सब्जियों में भंडारण के दौरान कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा व विटामिन में आपसी क्रिया के कारण वे खराब होने लगती हैं. सब्जियों में मौजूद तमाम अम्ल भंडारण और प्रसंस्करण के बाद सब्जियों को खराब कर देते हैं. तोड़ाई के बाद सब्जियों में पानी की कमी होने से वे बहुत तेजी से सूखने लगती हैं और उन का वजन भी कम होने लगता है. जड़ों और कंदों वाली सब्जियों के मुकाबले पत्तियों वाली सब्जियां जल्दी खराब हो जाती हैं. इस के अलावा सब्जियों में अन्य क्रियाएं भी तोड़ाई के बाद प्रभावित होती हैं. सब्जियों में सांस लेने की क्रिया तोड़ाई के बाद बढ़ जाती है, जिस से सब्जियों की सुगंध, रूप और आकार में तेजी से बदलाव होता है और पोषक तत्त्वों की मात्रा में भारी गिरावट होने लगती है. सब्जियों के वजन में भी कमी होने लगती है और सब्जियां सिकुड़ने लगती हैं.
सांस लेने दौरान सब्जियों के ऊतकों में आक्सीकरण के द्वारा शर्करा का विघटन होता है, जिस से सब्जियों के गूदे का रंग भूरा हो जाता है. सांस लेने की क्रिया में बढ़ोतरी के साथ बहुत ज्यादा मात्रा में गरमी पैदा होती है, जिस से रासायनिक परिवर्तन तेजी से होने लगते हैं. इस के अलावा सब्जियों में नुकसान कवक, यीस्ट और हानिकारक जीवाणुओं के पनपने के कारण भी होता है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक 5-8.6 फीसदी सब्जियों का नुकसान खेत स्तर पर, 10.5 फीसदी सब्जियों का नुकसान मंडी स्तर पर और 0.8 फीसदी सब्जियों का नुकसान उपभोक्ता स्तर पर आंका गया है. सब्जियों में तोड़ाई के बाद होने वाले नुकसान के खास कारणों की पहचान करने के बाद सही प्रबंधन के माध्यम से उसे दूर किया जा सकता है.
तोड़ाई से पहले की सावधानियां : शोध परिणामों के अनुसार कटाई से पहले फसल की स्थिति और उस में इस्तेमाल किए गए उर्वरकों की मात्रा व सिंचाई वगैरह कटाई के बाद सब्जी की गुणवत्ता और भंडारण कूवत को प्रभावित करती है. जिस फसल में नाइट्रोजन की मात्रा ज्यादा दी गई हो उस की गुणवत्ता और भंडारण कूवत दोनों कम होती हैं. टमाटर की फसल में पोटाश उर्वरकों का इस्तेमाल श्वसन क्रिया (सांस लेने) को प्रभावित करता है, जबकि तरबूज की फसल में पोटेशियम के इस्तेमाल से कटाई के बाद श्वसन क्रिया धीमी हो जाती है.
सिंचाई की मात्रा और सिंचाई का समय दोनों गाजर की भंडारण कूवत को प्रभावित करते हैं. बोआई के बाद पहले 90 दिनों में ज्यादा सिंचाई करने से 20 फीसदी गाजर की जड़ें फट जाती हैं, जबकि बोआई के बाद 120 दिनों तक हलकी सिंचाई और उस के बाद ज्यादा सिंचाई से कम नुकसान होता है इस से गाजर का रंग भी गाढ़ा लाल रहता है. पत्तेदार सब्जियों में ज्यादा सिंचाई करने से पत्तियां कड़ी हो जाती हैं और जल्दी सड़ने लगती हैं. इसी तरह कटाई से पहले कुछ खास रसायनों का छिड़काव कर देने से उन में सूक्ष्म जीवों का हमला कम हो जाता है और उन की गुणवत्ता भी भंडारण के दौरान कम प्रभावित होती है. प्याज में खुदाई से 10 दिनों पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए. इस से प्याज का छिलका मजबूत हो जाता है और भंडारण कूवत बढ़ जाती है.
तोड़ाई के बाद भंडारण : तोड़ाई के बाद सब्जियों की सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए. ब्लीचिंग पाउडर या पोटेशियम परमैगनेट के घोल में सब्जियों को धोने के बाद छांव में साफ जगह पर सुखाना चाहिए. सब्जियों में भंडारण के दौरान तय तापक्रम व नमी बनाए रखना चाहिए. 10 डिगरी सेंटीग्रेड के आसपास का तापमान ज्यादातर सब्जियों के भंडारण के लिए सही रहता है. सब्जियों के भंडारण के दौरान 5 से 6 डिगरी सेंटीग्रेड से कम का तापमान नुकसान पहुंचाता है, सब्जियों के भंडारण का 10-15 डिगरी सेंटीग्रेड से ज्यादा का तापमान रासायनिक परिवर्तनों और श्वसन क्रिया बढ़ने के कारण ऊतकों को नुकसान पहुंचाता है. अच्छे भंडारण के लिए सब्जियों की किस्मों के मुताबिक आर्द्रता पर भी नियंत्रण जरूरी है.
प्याज, लहसुन, काशीफल और अन्य कद्दूवर्गीय सब्जियों को सूखा रखने और सड़ने से बचाने के लिए कम नमी की जरूरत हती है, जबकि गोभीवर्गीय और जड़ वाली सब्जियों को इन के मुकाबले ज्यादा (90-95 फीसदी) नमी की जरूरत होती है. सब्जियों के सही भंडारण के लिए यह भी जरूरी है कि भंडारण के समय आक्सीजन सही मात्रा में मौजूद हो और सब्जियों से निकलने वाली नमी और ताप भंडारगृह में न रुके. हवा का आनाजाना ज्यादा होने से सब्जियां मुरझाने और सिकुड़ने लगती हैं और कम हवा होने पर पत्तियों को नुकसान और असामयिक अंकुरण होने लगता है. सब्जियों का भंडारण घरेलू स्तर पर या शीतगृह स्तर पर जरूरत के मुताबिक किया जा सकता है.
खेत स्तर पर सब्जियों के भंडारण के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए प्रदूषण रहित शून्य ऊर्जा शीत प्रकोष्ठ का निर्माण किया गया है. इस प्रकोष्ठ का निर्माण स्थानीय स्तर पर मौजूद ईंट, बालू और बांस की सहायता से बहुत कम लागत में किया जा सकता है. इस प्रकोष्ठ के अंदर का तापमान 15-20 डिगरी सेंटीग्रेड के आसपास तक आ जाता है. इस विधि से 2 दीवारों के बीच 15-20 डिगरी सेंटीमीटर स्थान चारों तरफ छोड़ दिया जाता है, जिस से बालू या अन्य जलग्राही पदार्थ भरते हैं, जिसे हमेशा पानी से नम रखा जाता है, जिस से अंदर का तापमान हमेशा बाहरी वातावरण से कम बना रहता है.
सब्जियों को नमक, साइट्रिक अम्ल, सोडियम बेंजोएट व पोटेशियम मेटाबाइसल्फाइट के घोल में रख कर प्लास्टिक के डब्बों में 4-6 महीने तक सामान्य कमरे के तापमान पर परिरक्षित किया जा सकता है. भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी में परिरक्षित रसायन जैसे नमक का घोल, पोटेशियम मेटाबाइसल्फाइट व सोडियम बेंजोएट के घोल में गोभी और करेले को 4 से 6 महीने तक कमरे के तापक्रम पर परिरक्षित किया जा सकता है. सब्जियों की पैकिंग : आमतौर पर सब्जियों की पैकिंग बोरे, लकड़ी और कागज के गत्तों और बांस की बनी टोकरियों में की जाती है. सब्जियों की पैकिंग आजकल बड़े पैमाने पर कोरूगेटेड गत्तों के डब्बों में की जा रही है.
इस के अलावा प्लास्टिक की विभिन्न मोटाई की थैलियों में लपेट कर उन में विभिन्न आकार के छेद बना कर सब्जियों की पैकिंग करने से कटाई के बाद सब्जियों की भंडारण कूवत को बढ़ाया जा सकता है. इसी तरह टमाटर वगैरह सब्यिजों को प्लास्टिक की थैली में इथिलीन अवशोषकों की मौजूदगी में रख कर उन की भंडारण कूवत को बढ़ाया जा सकता है.
नियंत्रित वातावरण में सब्जियों का भंडारण : इस पद्धति में सब्जियों के भंडारण में सामान्य गैसों का वायुमंडल बदल दिया जाता है, जिस से जैव रासायनिक और कार्यिकी क्रियाओं में कमी आ जाती है, जिस से सब्जियों को ज्यादा दिनों तक सुरक्षित रखाजा सकता है और उन की पौष्टिक गुणवत्ता ज्यादा दिनों तक बनी रहती है.
नियंत्रित वातावरण में भंडारण के लिए 2-5 फीसदी आक्सीजन और 3-8 फीसदी कार्बन डाईआक्साइड से सब्जियों का जीवन बढ़ जाता है. कार्बन डाईआक्साइड की अधिक मात्रा हो जाने पर सब्जियों में भूरापन, कालापन और सड़न जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं.
सब्जियों का परिवहन : भारत में अभी सिर्फ निर्यात की जाने वाली सब्जियों को शीतित कक्षों में रख कर विभिन्न हवाई अड्डों और समुदी बंदरगाहों तक पहुंचाया जाता है. मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक भारत से 63 विभिन्न प्रकार की सब्जियों का निर्यात किया जा रहा है, जिन में प्याज, आलू, भिंडी, करेला, मिर्च, परवल, शिमला मिर्च, एसपरगस, सिलेरी, स्वीट कार्न, बेबीकार्न वगैरह खास हैं. सब्जी निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत में भी अन्य विकसित देशों की तरह शीत भंडारगृहों और वातानुकूलिन वाहनों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है, जिस से कटाई के बाद सब्जियों में होने वाले नुकसान हो काफी हद तक कम किया जा सके और निर्यात को बढ़ावा मिलने से किसानों को उन के तमाम उत्पादों का अच्छा मूल्य मिल सके. इस तरह तोड़ाई के बाद अच्छा प्रबंध सब्जियों में होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम कर सकता है, जिस से एक तरफ किसानों को उन के उत्पाद के सही दाम मिल सकते हैं और दूसरी तरफ सब्जियों की गुणवत्ता जैसे रूप, रंग, आकार व पौष्टिकता को काफी दिनों तक सही बनाए रखा जा सकता है.