फर्जी कंपनियों का फैला जाल- ऐप लोन जालसाजी


 

ऐप लोन जालसाजी: जानलेवा डिजिटल “सूदखोर”, फर्जी कंपनियों का फैला जालऐप लोन जालसाजी: जानलेवा डिजिटल “सूदखोर”, फर्जी कंपनियों का फैला जाल

“ऐप के जरिए फटाफट लोन बांटने वाली फर्जी कंपनियों का फैला जाल, गरीब-मध्यम वर्ग के लोग निशाने पर, आत्महत्याओं का सिलसिला जारी”

14 दिसंबर 2020:  24 साल की एग्रीकल्चर एक्सटेंशन अफसर किर्नी मोनिका ने जहर खा लिया। उन्हें यह कदम सिर्फ 5 हजार रुपये के कर्ज के लिए उठाना पड़ गया। उनके लिए कथित तौर पर किसानों की मदद के लिए फटाफट लोन देने वाले ऐप से लिया गया कर्ज बेइज्जती का सबब बन गया। असल में फर्जी तरीके से 55 कंपन‌ियों ने कर्ज दे  द‌िया । इस तरह उन पर 2.6 लाख रु. के कर्ज का बोझ डाल दिया। रिकवरी एजेंट ने उन्हें प्रताड़ित करने के लिए उनकी फोटो को ह्वाट्सऐप पर उनके सभी कॉन्टैक्ट को भेज दिया। उसमें लिखा कि मोनिका ने उनसे लोन लिया है, अगर वे उन्हें कहीं दिखाई देती हैं, तो उनसे लोन की रकम लौटाने के लिए कहें। मोनिका इस बेइज्जती को सह नहीं पाईं ।

14 दिसंबर 2020:  तेलंगाना के रामागुंडम के 36 वर्षीय के. संतोष को जहर खाकर मौत को गले लगाना ही आसान रास्ता दिखा। संतोष रामगुंडम फर्टिलाइजर्स ऐंड केमिकल्स लिमिटेड में साइट इंचार्ज थे। उन्होंने लॉकडाउन के दौरान अलग-अलग ऐप से कुल 51 हजार रुपये का कर्ज लिया। लेकिन कर्ज चुकाने में देरी की वजह से चंद महीनों में ब्याज ही 50 हजार रुपये तक पहुंच गया। संतोष ने अपने दोस्त को भेजे वीडियो में बताया कि वे किस तरह इन लोन ऐप्स के जाल में फंसे और उनके पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया।

16 दिसंबर 2020: 28 साल के वी.सुनील ने अपने साथ अपने 5 महीने के बेटे की भी जान ले ली। मौत की वजह ऐप के जरिए लिया गया कर्ज बना। तेलंगाना के रंगारेड्डी जिले के सुनील की लॉकडाउन के दौरान नौकरी चली गई थी। घर चलाने के लिए उन्होंने ऐप लोन देने वाली कंपनी से कुछ हजार रुपये कर्ज लिए थे। लेकिन कुछ ही हफ्ते में उनका कर्ज 2 लाख रुपये में तब्दील हो गया। कर्ज वसूलने के लिए रिकवरी एजेंट उन्हें भद्दी-भद्दी गालियां देने लगे और कर्ज नहीं चुकाने पर एफआइआर करने की भी धमकी देने लगे। तंग आकर सुनील को मौत के अलावा इस चंगुल से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखा।

इसे कोविड-19 की रोकथाम के लिए लगाए गए दुनिया में सबसे सख्त देशव्यापी लॉकडाउन का दुर्योग या जानलेवा दुष्परिणाम भी कह सकते हैं। दिसंबर के महीने से शुरू हुआ आत्महत्याओं का यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। तेलंगाना में अब तक छह लोग (8 जनवरी तक) कर्ज देने वाले ऐप के चंगुल में फंसकर अपनी जान गंवा चुके हैं। हालांकि उन्हें कर्ज देने वाली कंपनी कहना भी बेमानी है। यह लॉकडाउन में पनपे ऐसे क्रूर सूदखोरों की दास्तां हैं, जिसके चंगुल में एक बार जो फंसा, तो जान गंवाकर ही छुटकारा पाता है। यह सूदखोरों की वह पुरानी कहानियों की भी याद दिलाता है, जो ब्याज का ऐसा जाल बिछाता था कि कर्ज लेने वाला बेचारा गरीब अपनी जमीन-जायदाद सब गंवा देता था। कई बार तो कर्ज अगली पीढ़ियां तक चुकाती रहती थीं।

आधुनिक दौर में यही काम टेक्नोलॉजी और नियमों की कमजोरी का फायदा उठाकर ऐप लोन देने वाली कंपनियां कर रही हैं। यू कहें कि डिजिटल सूदखोर आ गए हैं, जिन्हें सबसे ज्यादा फायदा लॉकडाउन में मिला है। लाखों लोगों को लॉकडाउन में अपनी नौकरियां या काम-धंधे गंवाने पड़े। ऐसे में वह छोटी-मोटी जरूरतों के लिए पांच-पांच हजार रुपये तक के कर्ज लेने को भी मजबूर हो गए।

लोगों की इसी मजबूरी का फायदा ऐप लोन देने वाली कंपनियां उठा रही हैं, जो मिनटों में लोगों को 40-50 हजार रुपये तक का कर्ज दे देती हैं। उसके बाद हफ्ते-दस दिन के अंदर ही कर्ज चुकाने का दबाव शुरू हो जाता है। किस्त समय पर नहीं चुकाई, तो दूसरी कंपनियां आपको घेर लेती हैं, और कहती हैं, हमसे पैसा ले लो और पुराना कर्ज चुका दो। चारों तरफ से फंसा इंसान मरता क्या नहीं करता वाली स्थिति में पहुंच जाता है, और दूसरा कर्ज ले लेता है। कर्ज का यह जाल फैलता जाता है और कर्जदार फंसता जाता है। फिर पहुंच जाते हैं रिकवरी एजेंट, जो कंपनियों की तरफ से कर्ज वसूली के लिए बार-बार फोन करते हैं। यहीं नहीं, उनके रिश्तेदारों को फोन करके कर्जदार की बेइज्जती करते हैं। हालात इस कदर बिगड़ जाते हैं कि फिर कर्जदार को अपनी जान गंवाना ही सबसे आसान रास्ता दिखता है।

तेलंगाना और तमिलनाडु में ऐप लोन फ्रॉड के बढ़ते मामले के बाद अब पुलिस से लेकर जांच एजेंसियों ने कार्रवाई भी शुरू कर दी है। तेलंगाना पुलिस ने 4 जनवरी तक इस मामले में 50 से ज्यादा मामले दर्ज किए हैं और 29 लोगों को गिरफ्तार किया है। इसमें 3 चीनी नागरिक भी शामिल हैं। बढ़ते मामलों को देखते हुए अब इस पूरे मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय ने शुरू कर दी है। इसके लिए गूगल ने भी 454 ऐप को ब्लॉक कर दिया है। अभी तक तेलंगाना पुलिस ने अपनी जांच में फर्जी ऐप के जरिए करीब 1000 करोड़ रुपये के कर्ज बांटने का खुलासा किया है। इसके अलावा चीन की कंपनियों के जरिए बड़े पैमान पर लेन-देन का भी खुलासा हुआ लेकिन सवाल यह उठता है कि इस देश में जब आरबीआइ रेग्युलेटर के रूप में बैठा है तो फिर इतने बड़े पैमाने फ्रॉड कैसे हो रहा है।

इस सवाल का जवाब भी इंडस्ट्री से जुड़े लोग ही देते हैं। ऐप लोन कंपनी में काम करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने आउटलुक को बताया, “इस पूरे खेल को समझने के लिए हमें डिजिटल लोन के सिस्टम को समझना होगा। इसके लिए तीन तरह की कंपनियां होती हैं। पहली कंपनी जो ऐप के जरिए लोगों को कर्ज देती है। दूसरी कंपनी वह होती है जो इन ऐप्स को लोगों के मोबाइल पर डालती है यानी जिसके जरिए इन ऐप्स को लोग अपने मोबाइल पर डाउलोड करते हैं। तीसरी कंपनियां वह होती हैं, जो पैसों का लेन-देन कराती है यानी पेमेंट गेट-वे। इन तीन तरह की कंपनियों के जरिए ही ऐप से कर्ज देने का काम होता है।”

अगला सवाल यह उठता है कि क्या इस गोरखधंधे में तीनों तरह की कंपनियां शामिल हैं? जवाब सीधा नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि पेमेंट गेटवे का काम पेटीएम, रेजरपे, मोबिक्विक जैसी नामचीन कंपनियां कर रही हैं। लोगों के मोबाइल पर डाउनलोडिंग की सुविधा गूगल, एप्पल जैसी मल्टीनेशनल कंपनियां दे रही हैं। तो, फिर गड़बड़ी कहां हो रही है? इस पर इंडस्ट्री के सूत्र का कहना है, “आरबीआइ के नियमों के अनुसार ऐप से कर्ज देने वाली कंपनी को एनबीएफसी का लाइसेंस लेना जरूरी है। दूसरे जब कोई ऐप किसी पेमेंट गेटवे या फिर गूगल और ऐप्पल जैसी कंपनी से जुड़ने के लिए आवेदन करता है तो उसे आरबीआइ से मिला लाइसेंस दिखाना जरूरी होता है। लेकिन इस प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन नहीं किया जा रहा है। इसी वजह से फर्जी ऐप कंपनियां बिना लाइसेंस के पमेंट गेट-वे और ऐप स्टोर पर पहुंच जा रही हैं।”

इस मामले में गूगल का कहना है, “ऐसे जितने भी ऐप पाए गए हैं, जो कंपनी के सुरक्षा मानकों का उल्लंघन कर रहे थे, उन्हें तत्काल रूप से हटा दिया गया है। साथ ही डेवलपर्स से यह भी कहा गया है कि दूसरे ऐप की पहचान कर उन्हें स्थानीय कानून और नियमों को पालन करने के लिए कहा जाए। जो ऐसा नहीं करेंगे, उन्हें भी जल्द ही हटा दिया जाएगा। इसके अलावा इस संबंध में गूगल जांच एजेंसियों की भी पूरा मदद करेगा।” हालांकि गूगल ने यह नहीं बताया है कि उसने कितने ऐप्स को हटाया है लेकिन इंडस्ट्री सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ऐसे 454 ऐप को हटाया गया है।

बैंकर जी.एस. बिंद्रा का कहना है, “गूगल की इस कार्रवाई से यह तो साफ हो जाता है कि बड़े पैमाने पर फर्जी ऐप गूगल के प्ले स्टोर पर मौजूद थे। ऐसे में मामले सामने आने के बाद ही कार्रवाई क्यों हुई। शुरू से ही ऐसा सिस्टम होना चाहिए कि इस तरह के फर्जी ऐप प्लेस्टोर पर पहुंच ही नहीं पाए।” इंडस्ट्री के एक अन्य सूत्र का कहना है कि गूगल ने नवंबर 2019 में नई डेवलपर नीति को लागू किया था। इसके तहत ऐसे ऐप जो 60 दिन के अंदर कर्ज चुकाने की मांग करते हैं, उन्हें प्लेस्टोर पर जगह नहीं दी जाएगी। लेकिन कंपनी की कार्रवाई से साफ लगता है कि ऐसे ऐप प्लेस्टोर पर पहुंच गए थे।

इस बीच एक सवाल इंडस्ट्री के लोग यह भी खड़े कर रहे हैं कि पैसे के लेन-देन का काम पेमेंट गेट-वे से होता है, जिसके लिए इन कंपनियों को प्रति ट्रांजैक्शन 0.25 फीसदी से लेकर 1.5 फीसदी का कमीशन मिलता है। एक बात और समझने की है कि फर्जी ऐप किसी व्यक्ति के बैंक खाते में पैसा इन्हीं पेमेंट गेट-वे कंपनियों के जरिए भेजते हैं। ऐसे में लगता है कि यहां भी फर्जी ऐप की जांच-परख में कमी रह जाती है, जिसका फायदा ऐप के जरिए कर्ज देने वाली कंपनियां उठाती हैं।

इस मामले में डिजिटल लेंडर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सफाई दी, “वह अपने सदस्यों और नियामकीय संस्थाओं के साथ मिलकर इस तरह के फर्जीवाड़े को रोकने के लिए कदम उठा रहा है। हालांकि इस बीच हमने पाया है कि कुछ लोग सिस्टम की खामियों का फायदा उठाकर ऐसे ग्राहकों तक पहुंच जा रहे हैं, जिन्हें पैसों की सख्त जरूरत हैं। हम सख्त कोड ऑफ कंडक्ट बना रहे हैं। पेमेंट पार्टनर के साथ मिलकर ऐसी अवांछनीय गतिविधियों पर नजर रखने और असंगठित प्लेयर्स की पहचान करने का सिस्टम बना रहे हैं।”

एक बात और समझनी होगी कि अभी तक ज्यादातर फर्जीवाड़े और आत्महत्या के मामले तेलंगाना और तमिलनाडु राज्यों से सामने आए हैं। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि इस तरह की कंपनियां केवल इन्हीं राज्यों तक सीमित हैं। ये पूरे देश में फैल चुकी हैं और बड़े पैमाने पर लोगों को कर्ज बांट रही है। इसलिए ऐसी फर्जी कंपनियों से सचेत रहने की बेहद जरूरत है।