लक्षण कोविड के , लेकिन जांच के अभाव में कोरोना से मौत’ में उनकी गणना नहीं”

 

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले का ब्लॉक सोहागपुर। राजधानी भोपाल से सवा सौ किलोमीटर दूर। अप्रैल के आखिरी और मई के पहले हफ्ते यहां का मंजर भयानक था। गांवों में आधे लोग खांसी-बुखार से पीड़ित थे, लेकिन किसी की जांच नहीं हो रही थी। ऐसे दिन भी बीते जब जिला सरकारी अस्पताल में एक दिन में 50 लोगों ने दम तोड़ दिया। जांच हुई नहीं तो रिकॉर्ड में ‘कोविड से मौत’ नहीं लिखा गया, पर लक्षण कोविड के ही थे। लोग टायफाइड और न्यूमोनिया की दवा खाते-खाते चल बसे। सोहागपुर, मध्य प्रदेश के उन इलाकों में है जहां कोविड-19 का कहर सबसे अधिक रहा। अब जरूर मौतों की संख्या कम हुई है, लेकिन यह बताता है कि महामारी की दूसरी लहर ने किस तरह ग्रामीण इलाकों में मौत का तांडव मचा रखा है। सिर्फ मध्य प्रदेश में नहीं, बल्कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, बिहार... चारों दिशाओं में। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 5-11  मई के दौरान देश के 528 यानी 71 फीसदी जिलों में संक्रमण की दर 10 फीसदी से ज्यादा थी। एक्टिव केस 13 राज्यों में एक लाख से अधिक और छह राज्यों में 50 हजार से एक लाख तक थे। राष्ट्रीय स्तर पर पॉजिटिविटी रेट 21 फीसदी है और 42 फीसदी जिले राष्ट्रीय औसत से ऊपर हैं। एसबीआइ की एक रिपोर्ट के अनुसार 48.5 फीसदी नए मामले ग्रामीण जिलों से आ रहे हैं।

लेकिन यहां होने वाली ज्यादातर मौतें बेहिसाब हैं। बिना जांच गिनती कैसे होगी। आउटलुक ने कई राज्यों में ब्लॉक और पंचायत स्तर के शासकीय अधिकारियों से बात की। सबने वास्तविकता तो बताई लेकिन यह भी कहा कि उन्हें हकीकत न बताने का हुक्म मिला है। मौतों की हकीकत जाननी हो तो स्थानीय अखबारों के श्रद्धांजलि कॉलम देखिए। जयपुर के एक अखबार में एक दिन में सात पन्नों में श्रद्धांजलि छपी। गुजरात के भावनगर के एक अखबार में एक दिन में 200 श्रद्धांजलि प्रकाशित हुईं, जबकि उस दिन पूरे प्रदेश में मरने वालों का सरकारी आंकड़ा इससे कम था।

ऐसे हालात में केंद्र सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के. विजयराघवन ने यह कह कर चिंता बढ़ा दी कि कोरोना की तीसरी लहर भी आएगी। उन्होंने इसका समय तो नहीं बताया, लेकिन वायरोलॉजिस्ट डॉ. वी. रवि का मानना है कि सरकारों को अक्टूबर से दिसंबर के बीच इससे निपटने की तैयारी रखनी चाहिए। बच्चों को अभी वैक्सीन नहीं लग रही है, इसलिए उनके संक्रमित होने की आशंका अधिक होगी। डॉ. रवि कर्नाटक की कोविड-19 टेक्निकल एडवाइजरी समिति के सदस्य भी हैं। उनका मानना है कि भारत ने पहली लहर से तो अच्छे से निपटा, लेकिन दूसरी लहर की चेतावनी को नजरअंदाज किया गया। हालांकि विजयराघवन के अनुसार दूसरी लहर के इतने घातक होने की आशंका नहीं थी।

हालात इतने बुरे हैं कि आज वह व्यक्ति अपने आपको भाग्यशाली समझता है जिसके परिवार में कोरोना से एक भी मौत न हुई हो। आइसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव के अनुसार वायरस युवाओं को भी संक्रमित कर रहा है, लेकिन ज्यादा उम्र वाले अधिक प्रभावित हो रहे हैं। दोनों लहरों में 70 फीसदी से अधिक मरीज 40 साल से अधिक उम्र वाले हैं। दूसरी लहर की गंभीरता, खास कर गांवों में बढ़ते मामलों को देखते हुए उन्होंने कहा है कि रैपिड एंटीजन टेस्ट बढ़ाने की जरूरत है, ताकि शुरू मंे ही मामलों का पता चले। अभी 70 फीसदी आरटी-पीसीआर और 30 फीसदी रैपिड एंटीजन टेस्ट होते हैं।

गांवों के हालात

अभी जिन राज्यों में संक्रमण बढ़ रहा हैं, उनमें उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों की स्थिति ज्यादा खराब लग रही है। पिछले दिनों ललितपुर जिले के अनेक गांवों में खांसी-बुखार और सांस की तकलीफ से मरने वालों की संख्या अचानक बढ़ गई। स्थानीय लोगों का कहना है कि पहली बार मलेरिया और टायफाइड व्यक्ति से व्यक्ति में फैल रहा है और वे मर रहे हैं। जाहिर है, ये लक्षण कोरोना के ही हैं। देवरिया जिले की बरहद तहसील में रमेश श्रीवास्तव की मौत के बाद परिजन दाह संस्कार के लिए गए तो उन्हें 41वां नंबर मिला। उस दिन 60 से भी ज्यादा नंबर दिए गए थे। यानी एक-दो दिन में इतनी मौतें तो हुई ही थीं। गोरखपुर जिले के कुछ गांवों में रैपिड रिस्पांस टीम ने सिर्फ तीन दिन में बुखार के पांच हजार मरीजों की पहचान की। यहां हर दूसरे घर में बुखार के मरीज हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के सीमाई इलाके में गंगा में करीब 100 लाशें तैरती पाई गईं। बिहार के बक्सर में 71 और उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में 25 शव मिले। बक्सर पुलिस का कहना है कि ये शव गाजीपुर की तरफ से आए हैं। उन्नाव में अनेक लाशें रेत में दबा देने का मामला सामने आया है।

प्रदेश में कई सांसदों-विधायकों की मौत हो चुकी है। भाजपा नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शिकायत कर रहे हैं कि उनकी बात भी सुनी नहीं जा रही है। इस बीच, अलीगढ़ में लोग किसी बड़ी अनहोनी की आशंका में सहमे हुए हैं। यहां के एएमयू में तीन हफ्ते में 17 प्रोफेसरों की मौत हो चुकी है। दूसरी लहर में इन्हें मिलाकर करीब 50 एएमयू कर्मियों की मौत हो चुकी है।

यूपी पंचायत चुनाव के बाद वहां से लौटने वालों के कारण मध्य प्रदेश के सीमाई जिलों में कोरोना तेजी से फैल रहा है। सिंगरौली में संक्रमण दर 35.9 फीसदी है। यूपी से लगने वाले दूसरे जिलों में भी रोजाना अनेक नए मामले आ रहे हैं। प्रदेश के 45 जिलों में संक्रमण दर 10 फीसदी से अधिक है। फिर भी विकास एवं पंचायत विभाग के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव कहते हैं, “शुरू में ही बाहर से आने वालों की पहचान कर अलग करने लगे। इससे अनेक गांवों को संक्रमण से बचाने में कामयाब हुए।”

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा कहते हैं, “रोहतक के गांव टिटौली में चार दिनों में 42 लोगों की मौत से स्थिति यह हो गई कि खेतों में अंतिम संस्कार करना पड़ा।” भिवानी जिले के गांव मुढाल खुर्द में एक हफ्ते में 25 जानें चली गईं। सरपंच विजयपाल सिंह रोहिल्ला ने बताया, “15,000 की आबादी वाले गांव से 11 किलोमीटर दूर तक कोरोना जांच की सुविधा नहीं है।” मुढाल खुर्द पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल की ससुराल रही है। स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज खुद कहते हैं, “कोरोना बुलेटिन में गांवों के आंकड़े शामिल नहीं हैं।” सरकारी आंकड़ों मुताबिक 23 अप्रैल से 8 मई तक, 15 दिनों में 1.90 लाख संक्रमित हुए और करीब 2000 लोगों की मौत हो गई। ग्रामीण इलाके भी शामिल किए जाएं तो यह आंकड़ा कई गुना बढ़ सकता है।

हरियाणा के गांव टिटौली में चार दिनों में 42 लोगों की मौत से स्थिति यह हो गई कि खेतों में उनका अंतिम संस्कार करना पड़ा

पहली लहर में काफी हद तक सुरक्षित रहे पंजाब के ग्रामीण इलाकों में इंग्लैंड के वैरिएंट से मातम पसरा है। फरवरी और मार्च में पंजाब लौटे एनआरआइ की वजह से यहां 80 फीसदी संक्रमितों में इंग्लैंड का स्ट्रेन मिला। एनआरआइ बेल्ट दोआबा में फरवरी से हुई कुल मौतों में से 60 फीसदी ग्रामीण इलाकों में हुई हैं। अप्रैल के दूसरे हफ्ते से माझा और मालवा के ग्रामीण इलाकों में भी संक्रमण और मौतें तेजी से बढ़ी हैं।

बिहार में कोरोना विस्फोट तो पहले हो चुका था, पर सरकार की नींद टूटी हाइकोर्ट के तेवर से। कोर्ट ने कहा, सरकार लॉकडाउन पर निर्णय करे वर्ना हम करेंगे। पटना का एम्स हो, आइजीआइएमस, पीएमसीएच, एनएमसीएच या दूसरे अस्पताल, हर जगह बेड और ऑक्सीजन के अभाव में लोग दम तोड़ते रहे। हद तो तब हुई जब मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह की भी कोरोना से मौत हो गई। नेता भी अछूते नहीं रहे। भाजपा एमएलसी टुन्ना पांडेय, हरिनारायण चौधरी, जदयू एमएलसी तनवीर अख्तर, जदयू विधायक मेवालाल चौधरी नहीं रहे। दूसरी ओर, सरकार की खामियां बताने वाले नेता पप्पू यादव को 1989 के एक मामले में गिरफ्तार कर लिया गया।

आकार और आबादी के हिसाब से छोटा प्रदेश होने के बावजूद झारखंड में संक्रमण की तीव्रता तीखी है। अस्पताल परिसर में लोग दम तोड़ते नजर आए तो बेड, दवा, ऑक्सीजन और एंबुलेंस की धड़ल्ले से ब्लैमार्केटिंग भी होती रही। रांची, धनबाद, जमशेदपुर, हजारीबाग में संक्रमण का प्रभाव ज्यादा ही है। प्रदेश के 15 जिलों में संक्रमण की दर 15 फीसदी से ज्यादा है।

छत्तीसगढ़ में कोरोना 10 हजार से अधिक लोगों की जान ले चुका है। इनमें से 5,000 मौतें अप्रैल मध्य के बाद हुई हैं। रायपुर और भिलाई के बाद बस्तर और दूसरे ग्रामीण अंचलों में महामारी फैल रही है। राजस्थान में जयपुर के बाद बीकानेर और राजसमंद जिले सर्वाधिक प्रभावित हैं। यहां तो संक्रमण दर 50 फीसदी से भी ज्यादा है। उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में भी रोजाना 100 से ज्यादा लोगों की कोविड-19  से मौत हो रही है।

गुजरात की राजधानी गांधीनगर के लोग 16 अप्रैल की तारीख कभी नहीं भूल पाएंगे, उस दिन एक साथ 89 शवों की अंत्येष्टि हुई थी। सूरत में करीब 1,900 मरीजों की जान जा चुकी है। राजकोट में दो हफ्ते में 650 से ज्यादा मौतों की खबर है। इसी तरह भावनगर जिले के चार सर्वाधिक प्रभावित गावों में दो महीने में 225 जानें जा चुकी हैं। लेकिन सरकार अपना रिकॉर्ड खराब नहीं करना चाहती। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने 8 मई को सार्वजनिक बयान में कहा कि राज्य के किसी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी नहीं है, न ही ऑक्सीजन की कमी से मौत हुई है। जबकि उन्हीं की सरकार ने कोर्ट में कहा, “ऑक्सीजन की कमी से पूरा सिस्टम भीषण दबाव में है। 23 अप्रैल से 7 मई के बीच रोजाना औसत मांग 1,232 टन की रही।”