कोविड संकट ने शिक्षा व्यवस्था का कर दिया बुरा हाल


 कोविड संकट ने शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल कर दिया है. इसमें प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा सभी शामिल है. सबसे अधिक बुरा प्रभाव उच्च शिक्षा पर पड़ रहा है. जहां छात्र अपनी शिक्षा पूरी करके रोजगार की तलाश में निकलते है तो वहां उनको ज्यादातर खाली हाथ रहना पड़ता है. उच्च शिक्षा में आईआईएम, आईआईटी जैसे विश्वविद्यालय औनलाइन शिक्षा का बेहतर उपयोग भले कर रहे हों पर देश में ऐसे कालेज और संस्थान सबसे अधिक हैं जहां औनलाइन शिक्षा सही प्रकार से नहीं हो पा रही है. औनलाइन शिक्षा में नोट्स और असाइनमेंटस का बहुत महत्व होता है. इनको इस तरह से तैयार किया जाता है कि छात्रों को असुविधा ना हो पर ज्यादातर कालेजों में ऐसा माहौल नहीं है.

आज कोरोना की सब से अधिक मार देश का भविष्य संवारने वाले छात्रों पर पड़ रही है.देश के शिक्षण संस्थान पिछले साल से बंद हैं जिस के खुलने के आसार इस साल भी नजर नहीं आते. ऐसे में इन छात्रों के भविष्य के लिए क्या विकल्प हों इस पर सोचना बेहद जरुरी है.

2020 के बाद यह सोचा जा रहा था कि अगले साल शिक्षा का सत्र सही से चलेगा. 2020 के दिसंबर माह से ही इस बात के प्रयास भी शुरू कर दिए गए थे. 2021 की जनवरी माह में स्कूल और कालेज का खुलना शुरू हुआ. कालेजों के बाद स्कूलों को भी खोल दिया गया. औनलाइन क्लास के बाद औफलाइन परीक्षाएं भी प्लान की जाने लगी. कालेजों में तो फरवरी-मार्च माह में पहले सेमेस्टर की परीक्षाएं होने लगी थी. इसी समय फिर से कोविड संक्रमण का दौर शुरू हो गया. कोविड की दूसरी लहर बहुत तेजी से आगे बढ़ने लगी और पूरे देश को अपनी गिरफ्त में लेने लगी. 2020 में कोविड संक्रमण से देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा था, इस साल जानमाल को बेहद नुकसान होने लगा. छात्रों को बिना परीक्षा के पास कर देने से वह दूसरी कक्षा में पहुंच तो जा रहे पर उनको जानकारी ना के बराबर हो रही है.

कोविड संक्रमण का शिकार होकर लोगों के मरने से परिवार के परिवार तबाही की कगार पर पहुंच गए. देश में मंहगी शिक्षा पहले से ही सामान्य परिवारों को परेशान कर रही थी. दो साल से उपजे कोविड संकट ने जिस तरह से देश के आर्थिक आधार को तोड़ने का काम किया उसका प्रभाव भी शिक्षा पर पड़ा है. स्कूलों में पिछले साल से औनलाइन शिक्षा दी जा रही है. इससे छात्रों को बहुत कुछ समझ नहीं आ रहा है. किताबी जानकारी तो किसी तरह से मिल भी जा रही पर प्रैक्टिकल विषयों की जानकारी एकदम भी नहीं हो रही है. शिक्षाविद रिचा खन्ना कहती है,“औफलाइन शिक्षा और औनलाइन शिक्षा दोनो में अंतर होता है. जिन विषयों में प्रैक्टिकल का महत्व होता है वहां केवल औनलाइन से काम नहीं चलता है. हमारे देश में औनलाइन शिक्षा का आधार अभी तैयार हो रहा है.”

कोविड का प्रभाव शिक्षा व्यवस्था पर और भी कई तरह से रहा है. कोविड संकट के दौरान लोगों में बेरोजगारी भी बढ़ रही है. जिन बच्चों ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली उनको रोजगार नहीं मिल रहा है. प्राइवेट नौकरी में सेलरी का पैकेज कम हो गया है. डाक्टर, इंजीनियरिंग,ला और एमबीए की पढ़ाई में अब महंगी फीस परिवारों को अदा करनी पड़ती है. कई परिवार कर्ज लेकर बच्चों को पढ़ाते है. उनको यह उम्मीद होती है कि बच्चा जब पढ़ाई करके कालेज से निकलेगा तो उसकी कमाई से पढ़ाई का कर्ज भी पूरा हो सकेगा और घर को मदद भी मिलेगी. कोविड संकट के दौरान पहले साल तालाबंदी होने के बाद प्राइवेट सेक्टर को बहुत नुकसान हआ. देश मंदी के दौर में पहुंच गया. आर्थिक संकट गहराने से नौकरियों का सकट खड़ा हो गया. जिन युवाओं को नौकरियां मिली भी वहां पैकेज कम था.

पढ़ाई और फीस का खर्च कम नहीं हुआ. कालेजों में फीस के साथ ही साथ हौस्टल में रहने और खाने की खर्चा बढ़ गया. पहले नौर्मल होस्टल की फीस 60 से 80 हजार रूपए सालाना थी. जो अब बढ़ कर 80 हजार से 1 लाख तक पहुंच गई है. 2020-2021 में भले ही बच्चों को हौस्टल में रहना ना पड़ा हो पर स्कूलों में हौस्टल के खर्च में किसी तरह की रियायत नहीं दी गई. औनलाइन पढ़ाई हुई और छात्र कालेज नहीं गए पर फीस और हौस्टल में खर्च में राहत नहीं दी गई. समाजसेवी प्रताप चन्द्रा कहते है कि,“शिक्षा पूरी करने के बाद भले ही रोजगार नहीं मिल रहे. बेरोजगारी बढ़ने से फीस देने की दिक्कत आई. लोगों ने बच्चों की पढ़ाई छुड़वाने का काम किया. कम फीस वाले स्कूलों में भर्ती कराया. इसके बाद भी पढ़ाई के बाद रोजगार कहीं दिख नहीं रहा है.

कोविड से केवल 2020 के साल में ही दिक्कत नहीं थी, 2021 में भी पढ़ाई का यही हाल देखने को मिल रहा है. जिस तरह से यह कहा जा रहा है कि इस साल के अंत तक कोविड की तीसरी लहर भी आने का अंदेशा दिख रहा है. अनुमान लग रहा है कि तीसरी लहर का प्रभाव छोटे बच्चों पर पड़ेगा. जिससे स्कूल और कालेज सबसे अधिक प्रभावित होंगे. ऐसे में शिक्षा का हाल सुधरता नहीं दिख रहा है. जानकार लोग मान रहे हैं 2024 तक स्कूल और शिक्षा के हालत सुधरने वाले नहीं है. जब तक कोविड को लेकर पूरे देश में वैक्सीन नहीं लग जाएगी और कोविड का प्रभाव कम नहीं हो जाएगा तबतक सुचारू रूप से शिक्षा का यही हाल रहेगा. ऐसे में इस दौरान शिक्षा व्यवस्था औनलाइन पर निर्भर करेगी. अगर शिक्षा व्यवस्था में औनलाइन का प्रभाव असर ऐसे ही बना रहेगा तो स्कूलों पर भी संकट खड़ा हो जाएगा.

एक साल में 2 सेमेस्टर भी अब पूरे नहीं हो पा रहे. जो छात्र नए कोर्स में प्रवेश चाहते हैं समय से सेमेस्टर पूरा ना हो पाने के कारण वह पूरा नहीं हो पाता है. समय पर परीक्षाएं और परीक्षा के परिणाम घोषित ना होने के कारण छात्र और उनके पैरेंटस दोनों ही तनाव में रह रहे हैं.कालेजों के द्वारा परीक्षाओं के नाम पर खानापूर्ति करके छात्र को अगली कक्षा तो में प्रवेश तो दे दिया जा रहा है पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का पूरी तरह से अभाव दिखता है. ऐसे में यह छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं को कैसे पास कर पाएंगे यह सवाल बना हुआ है. समय पर परीक्षाएं आयोजित ना होने के कारण अंतिम साल के छात्रों पर प्लेसमेंट ना होने का खतरा मंडराता रहता है.छात्रों के इंटर्नशिप और दूसरे कार्यक्रमों पर भी समय पर परीक्षाएं आयोजित ना होने का प्रभाव पड़ता है.

स्कूल और कालेजों के सुचारूपूर्वक ना खुलने से छात्रो के सर्वांगीण विकास पर असर पड़ता है. खेल, मनोरंजन और डिबेट जैसे कार्यक्रमों के आयोजन से छात्रों का सर्वागीण विकास होता था. परिसर बंद रहने से यह गतिविधियां पूरी तरह से ठप्प पड़ीहैं. आज छात्र कंप्यूटर, लैपटौप और मोबाइल तक सीमित रह जा रहे हैं. घरों में कैद होने की वजह से सामाजिक दूरी बन रही है. ऐसे में छात्र डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारियों के शिकार होते जा रहे हैं. मनोविज्ञानी डाक्टर नेहा आनंद कहती है कि, “छात्रों को ऐसी हालत से बाहर निकालने के लिए कालेज और घरपरिवार को मिल कर सोचना चाहिए. इसके साथ ही साथ मनोविज्ञानियों को भी इस दिशा में सोचविचार करना चाहिए. जिससे वह छात्रों को इस हालत से निकालने में मदद कर सके.

कोविड का सबसे अधिक खराब प्रभाव शिक्षा व्यवस्था पर पड़ रहा है. सरकार, समाज और घरपरिवार को मिलाकर इसका रास्ता निकालना होगा. ऐसे विकल्प तलाशने होंगे जिसमें छात्रों के भविष्य पर कोविड की इस अव्यवस्था का कम से कम प्रभाव पड़ सके. यह समय ऐसा है जब छात्रों का मनोबल बढ़ाया जाना चाहिए. कोविड की समूची व्यवस्था के कारण पूरी दुनिया में शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल है. हमारे देश में छात्रों की संख्या अधिक होने और गरीबी होने के कारण संकट अधिक है. यह संकट आने वाले सालों में एकदम से खत्म नहीं होने वाली है. ऐसे में इसको सामने रखकर शिक्षा व्यवस्था को तैयार करना होगा. तभी इसका मुकाबला किया जा सकता है.