सब एक-दूसरे का हाथ थामें, चाहे वह गरीब हो अथवा अमीर,

विश्व कोरोनावायरस संक्रमण की दूसरी लहर की चपेट में घिरता जा रहा है।” वायरस ने  लोगों को अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया था, भले ही उन दिनों उसकी रफ्तार धीमी थी। महीने भर बाद जब वायरस ने पूरी शक्ति के साथ प्रहार किया तो लोगों की जान पर बन आई। 

सरकार तो जैसे कहीं नजर ही नहीं आ रही है। अचानक ना तो ऑक्सीजन है, न अस्पतालों में बेड, न रेमडेसिविर इंजेक्शन ना टॉसिलिजुएंब और ना ही बीमार पड़ने वालों की संख्या को देखते हुए वेंटिलेटर।

मध्यवर्ग के लिए पैसा, सोशल नेटवर्क, संपर्क और यहां तक कि जुगाड़ ने भी काम करना बंद कर दिया है। महज एक बेड की तलाश में मरीज एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भाग रहे हैं और उन्हीं अस्पतालों की पार्किंग में दम तोड़ रहे हैं। अनेक लोगों की मौत सिर्फ इसलिए हो गई क्योंकि जिन अस्पतालों में जीवन बचाने के लिए वे भर्ती हुए थे वहां अचानक ऑक्सीजन खत्म हो गई। वह भी कोई छोटे-मोटे अस्पताल नहीं, बल्कि देश की राजधानी के सबसे बड़े अस्पतालों की यह स्थिति थी।

हालत यह है कि श्मशान में शवों के दाह संस्कार के लिए लकड़ियां कम पड़ गई हैं, कब्रगाह में दफनाने की जगह नहीं बची है। बड़े-बड़े अस्पताल ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए रोजाना अदालत दौड़ रहे हैं।

मध्यवर्ग के लिए यह एक बार फिर आतंकवाद की तरह वायरस ने भी लोगों के घरों पर भयानक हमला बोला है। एक वरिष्ठ रिटायर्ड आईएएस की बातों से लोगों की स्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा, “मेरी तरह अनेक लोग यह समझते रहे कि हमारे साथ ऐसा नहीं होगा, लेकिन महामारी ने किसी को नहीं छोड़ा। मेरी मां और पति दोनों बिना इलाज के चल बसे। दिल्ली के जिन शीर्ष अस्पतालों में हम अक्सर जाया करते थे वहां इलाज के लिए जगह ही नहीं मिली। हां दोनों की मौत के बाद डॉक्टरों ने उन्हें कोविड पॉजिटिव घोषित कर दिया।” क्या यह घटना हमें सामूहिक रूप से शर्मशार नहीं करती?

गरीब इस बात को अच्छी तरह समझ रहे हैं कि अगर महामारी ने उन्हें अपनी चपेट में लिया तो उनके बचने की कोई गुंजाइश नहीं। दुर्भाग्यवश मध्यवर्ग को भी अब ऐसा ही एहसास होने लगा है। वे गुस्से में हैं और नाराजगी का इजहार कर रहे हैं। ‘भगवान की इच्छा’ से जब मौत का यह तांडव रुकेगा तो हमें उस सीख को नहीं भूलना चाहिए जिसे हमने अपने करीबियों को खोकर हासिल किया है। हम उस सीख का इस्तेमाल एक स्नेही, सहानुभूति और दया भाव रखने वाले देश के निर्माण में करें। दुःस्वप्न अभी खत्म नहीं हुआ है। आज जरूरत इस बात की है कि सब एक-दूसरे का हाथ थामें, चाहे वह गरीब हो अथवा अमीर, ताकि हम सब मिलकर इस वायरस पर विजय हासिल कर सकें।