इंजीनियरिंग के बाद भी बेरोजगारी

इंजीनियरिंग के बाद भी रोजगार न मिलने की गारंटी के चलते इसके प्रति छात्रो का क्रेज घट रहा है. इसी वजह से इसकी सीटें दशक के सबसे निचले स्तर तक लुढ़क गई हैं.

इंजीनियरिंग को देश की प्रगति का हिस्सा माना जाता है. अगर देश में इंजीनियर बडी संख्या में बेरोजगार हो तो देश की प्रगति का अंदाजा लगाया जा सकता है. यह हालत उस समय काल में है जब यह कहा जाता है कि देश विश्व गुरू बनने की दिशा में सबसे आगे है. बिना इंजीनियरिंग सेक्टर के देश विश्व गुरू कैसे बनेगा यह सोचने वाली बात है.

नोटबंदी, जीएसटी, कोरोना और केन्द्र सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण कांस्ट्रैशन, आईटी, कंप्यूटर, और आटोमोबाइल सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुये. इनके प्रभावित होने का सबसे बडा प्रभाव इंजीनियरिंग सेक्टर पर पडा. इंजीनियरिंग करने के बाद भी छात्रों को नौकरियां नहीं मिल रही. सेलरी का पैकेज कम हो गया. जिसकी वजह से जौब और सैलरी पैकेज के लिहाज से हौट केक कहा जाने वाला इंजीनियरिंग सेक्टर अब अपने सबसे बुरे दौर में पहंुच गया है. 7 सालों में बी.टेक की 51 फीसदी सीटें खाली रह गई. पढेलिखे इंजीनियर अब सरकारी चपरासी बनने की होड मेें आवेदन करने लगे है.

हर मां बाप की एक इच्छा होती थी कि उसका बेटा पढलिख कर आईएएस, डाक्टर या इजीनियर बने. अगर बेटा है तो इंजीनियर और अगर बेटी है तो डाक्टर बने. आईएएस बनने में लंबा समय लगता था. डाक्टर बनने में भी एमबीबीएस के बाद एमडी और दूसरे कोर्स करने के बाद ही अच्छे डाक्टर बन सकते थे. ऐसे में सबसे अच्छा इंजीनियर बनना होता था. 12 वीं पास करने के बाद 4 साल का बी.टेक करने के बाद अच्छी नौकरी मिल जाती थी. कम से कम 8 से 10 लाख का सालाना पैकेज मिल जाता था. ऐसे में इंजीनियर बनना ही समझदारी मानी जाती थी.

इंजीनियरिंग पढने वालों की संख्या बढने लगी तो इंजीनियरिग पढाने वाले कालेज पूरे देश में कुकरमुत्ते की तरह से उग आये. जिन बच्चों को आईआईटी और एमएनआईटी जैसे कालेजों में एडमिशन नहीं मिलता था तो वह प्राइवेट कालेजों में पढाई करके इंजीनियर बनने लगे. प्राइवेट कालेजो में 4 साल की पढाई में 8 लाख से लेकर 12 लाख तक का खर्च आने लगा. इतने पैसों का इंतजाम बहुत सारे पैरेंटस करने लगे. पैरेंटस को लगता था कि एक दो साल की सैलरी में पूरी पढाई का खर्च निकल आता है.

सरकारी चपरासी से भी कम हो गया वेतन :

2014-15 के बाद इंजीनियरिंग की जौब में गिरावट शुरू होने लगी. इंजीनियरिंग में सबसे अधिक जौब कांस्ट्रैशन सेक्टर, आईटी सेक्टर, कंप्यूटर सेक्टर और आटोमोबाइल सेक्टर में थी. इन सभी सेक्टर में गिरावट के कारण इंजीनियरिंग की जौब संकट के दौर में आ गई है. इसके कारण इंजीनियर की पढाई पूरी करने के बाद भी जौब नहीं मिल रही. जो जौब मिल रही है उसमें भी सेलरी का पैकेज 3 लाख का आ गया है.

इंजीनियरिंग के मुकाबले ग्रेजुएट करके दो साल बीएड करने के बाद अगर बच्चा टीईटी टीचर्स इंजीबिल्टी टेस्ट पास स्कूल टीचर्स बन सकते है. जहां सरकारी टीचर्स बनने पर 50 हजार को मासिक वेतन मिलने लगता है. वहां प्रमोशन भी होते है जौब सुरक्षा की भी गारंटी होती है. इसकी पढाई में खर्च कम आता है. बीएड की दो साल की पढाई में 50 हजार से 1 लाख तक का खर्च आता है. ऐसे में अब इंजीनियर बनकर भी बेरोजगार युवाओं की संख्या बढती जा रही है. ऐसे में यह बेरोजगार इंजीनियर सरकारी चपरासी की नौकरी के लिये भी आवेदन करने में पीछे नहीं रह रहे है.

बढती बेरोजगारी से बंद होने लगे कालेज :

इंजीनियरिंग के बाद भी रोजगार न मिलने की गारंटी के चलते इसके प्रति छात्रो का क्रेज घट रहा है. इसी वजह से इसकी सीटें दशक के सबसे निचले स्तर तक लुढ़क गई हैं. 2015-16 से लगातार इंजीनियरिंग कॉलेज बंद होने के लिए आवेदन कर रहे हैं. इंजीनियरिंग सीटें भी कम हो रही हैं. ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के आंकडों के मुताबिक अब देश भर में अंडरग्रेजुएट, पोस्टग्रेजुएट और डिप्लोमा लेवल की इंजीनियरिंग सीटें घटकर 23.28 लाख रह गई हैं. इस गिरावट के चलते 1.46 लाख सीटें कम हुई हैं.

टैक्निकल एजूकेशन में को बढावा देने के लिये सरकार ने इसमें इंजीनियरिंग के साथ ही साथ ऑर्किटेक्चर, मैनेजमेंट, होटल मैनेजमेंट और फार्मेसी को भी शामिल कर लिया गया है. बीटेक की सबसे ज्यादा सीटें अभी है. 80 फीसदी सीटें इंजीनियरिंग की हैं. कमजोर इंफ्राटैक्चर, लैब्स व फैकल्टी की कमी के कारण कालेज अच्छी पढाई नहीं करा पा रहे है. जिसकी वजह से अच्छे इंजीनियर भी नहीं तैयार हो पा रहे. विदेशो में भी इनको जौब नहीं मिल पा रही.

2014-15 में देश भर के एआईसीटीई से स्वीकृत कालेजो में करीब 32 लाख इंजीनियरिंग सीटें थीं. इंजीनियरिंग को लेकर घटते क्रेज के चलते करीब सात साल पहले कई इंजीनियरिंग कॉलेजों को बंद हो गये. 6 सौ से अधिक इंजीनियरिंग कालेज बंद हो गये. कोरोना महामारी के चलते 2015-16 से लेकर हर साल कम से कम 50 इंजीनियरिंग संस्थान बंद हुए हैं. इस साल भी 63 संस्थानों को बंद करने की एआईसीटीई से मंजूरी मिल गई. 2016-17 में देश भर के 3291 इंजीनियरिंग कॉलेजों में 15.5 लाख बीटेक की 51 फीसदी खाली रह गई. देश भर में नए इंजीनियरिंग कॉलेजों खुलने के आंकडे देखे जाये तो पांच साल में सबसे कम कालेज खुले है. एआईसीटीई ने 2019 में 2020-21 में 54 नए इंजीनियरिंग कालेजो को ही मंजूरी दी है. एआईसीटीई ने 2017-18 में 143, 2018-19 में 158 और 2019-20 में 153 नए संस्थानों को मंजूरी दी थी.

इंजीनियरिंग सैक्टर को देश के निर्माण का सबसे बडा सैक्टर माना जाता है. जिस देश में इंजीनियरिंग की पढाई से छात्रों का क्रेज घटने लगे कालेज बंद होने लगे और पढे लिखे इंजीनियर सरकार चपरासी की नौकरी के लिये आवेदन करने लगे उस देश के प्रगति के बारें में अंदाजा लगाया जा सकता है. गलत सरकारी नीतियों के चलते लाखों लाख इंजीनियर बेरोजगार है. वह 3 से 4 लाख सालाना के पैकेज पर भी नौकरी करने को तैयार है. वह इंजीनियरिंग के काम के अलावा मार्केटिंग और दूसरे क्षेत्र में काम करने लगे है.