कोशिश इस बात की हो कि दूर जा कर भी घर और परिवार के बीच की दूरी न रहे.......

 जमाना बदल रहा है. बच्चे अब घरपरिवार से दूर रह कर अपना कैरियर और जौब तलाशने लगे हैं. इसे समय की मांग भी कहीं.हा जा सकता है. ऐसे में घबराए  नहीं

पढ़ाई हो या नौकरी, अब बच्चे दूरदूर के शहरों तक जाने लगे हैं. कई बार तो कक्षा 12 के बाद ही अपनी पढ़ाई पूरी करने दूसरे शहर जाने लगे हैं. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि अब शहर से शहर और देश से देश की दूरियां कम हो गई हैं. आनेजाने और वहां रहनेखाने के तमाम सरल उपाय उपलब्ध हैं.

लड़के ही नहीं, बड़ी तादाद में लड़कियां भी दूर शहरों तक जाने लगी हैं. वैसे तो दूर शहर जाना कोई बड़ी समस्या अब नहीं है, लेकिन इधर कुछ सालों में जिस तरह से कोरोना के कारण तालाबंदी हुई और तरहतरह की पाबंदियां लगीं उस से बाहर जाने वाले बच्चों और उन के घरपरिवार के लोगों के मन में डर बैठ गया है.

केवल कोरोना ही नहीं, रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान भी वहां पढ़ाई कर रहे बच्चों को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा. इस की वजह से अब नौकरी या पढ़ाई के लिए घर छोड़ कर जाने में बच्चों व परिवार को चिंता होने लगी है. वैसे देखें तो लोग बहुत जल्द इन हालात से बाहर भी निकल रहे हैं. बच्चों के कैरियर को प्राथमिकता देते हुए घर वाले फैसले करने लगे हैं. यही वजह है कि छोटे शहरों के बच्चे भी अब नएनए मुकाम हासिल करने लगे हैं. इस में बच्चों के साथसाथ उन के परिवार के लोगों के फैसले महत्त्वपूर्ण होते हैं. कोरोना और यूक्रेन युद्ध के बाद के हालात से बाहर निकल कर लोग बच्चों को फिर से बाहर भेजने लगे हैं.

इंजीनियरिंग और डाक्टरी की पढ़ाई के लिए ही नहीं बल्कि आर्ट, कौमर्स, कानून और मैनेजमैंट की पढ़ाई के लिए भी बच्चे अब दूरदूर जाने लगे हैं. इस की वजह यह है कि जमाना कंपीटिशन का है. आज हर बच्चा अच्छी से अच्छी शिक्षा हासिल करना चाहता है और अपने कैरियर को नई उंचाइयों तक ले जाना चाहता है. अपने शहर से दूर दूसरे शहर में जाना कोई अजूबा नहीं है. कोशिश इस बात की हो कि दूर जा कर भी घर और परिवार के बीच की दूरी न रहे और न ही अकेलेपन का अनुभव हो.

बच्चों के दूर शहर में पढ़ने या नौकरी करने जाने के बाद पेरैंट्स और बच्चे दोनों ही अकेलापन अनुभव करने लगते हैं. कई बार बच्चे नए माहौल में खुद को ढाल नहीं पाते हैं और कई बार पेरैंट्स बच्चों की याद में अकेलापन अनुभव करने लगते हैं.

दूर रह कर भी एकदूसरे के पास रहें. आपस में बातें शेयर करते रहें. आमतौर पर यह देखा जाता है कि पेरैंट्स ज्यादातर यह पूछते हैं कि खाना खा लिया, कब सोए, कब क्या किया…? ऐसे रूटीन सवाल कम से कम करें. एकदूसरे की परेशानियों के बारे में बात करते रहें. किस तरह से वह परेशानी से बाहर निकले, यह बताएं. आपस में ऐसा माहौल रखें कि एकदूसरे से बातें होती रहें.

जमाना बदल रहा है. पेरैंट्स और बच्चों दोनों को ही घर, परिवार और समाज की जिम्मेदारियों को सम?ाते हुए काम करना पड़ेगा. तभी हर तरह की बाधाएं दूर होंगी और बच्चे आगे बढ़ सकेंगे.